मानव संभल जाता तो आज ये दिन न देखना पड़ता , उधार की साँसें। मानव संभल जाता तो आज ये दिन न देखना पड़ता , उधार की साँसें।
पत्ते भी निखर रहे हैं शुद्ध हवा के साथ। पत्ते भी निखर रहे हैं शुद्ध हवा के साथ।
"कुछ नहीं बस देख रही हूँ कि क्या वाकई शर्मा जी छेड़ा है क्या ?" "कुछ नहीं बस देख रही हूँ कि क्या वाकई शर्मा जी छेड़ा है क्या ?"
लेखक : निकोलाय गोगल अनुवाद : आ. चारुमति रामदास और बाहर निकल गया, नहीं होता और जो हर गन्दी जगह पर ... लेखक : निकोलाय गोगल अनुवाद : आ. चारुमति रामदास और बाहर निकल गया, नहीं होता और...
बेटा यह इंसानी दुनिया हम जीवों को जीने नहीं देगी बेटा यह इंसानी दुनिया हम जीवों को जीने नहीं देगी
यह पक्षी जिस भी घर में या उसके आंगन में पाई जाती है, वहाँ सुख-शांति बनी रहती है यह पक्षी जिस भी घर में या उसके आंगन में पाई जाती है, वहाँ सुख-शांति बनी रहती है